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शनिवार, 8 जून 2013

तो बात कुछ और ही होती ...

जिंदगी हसीन है  तेरे बिन भी  यूँ तो
तू होती इसमें शामिल तो बात कुछ और ही होती ...


जागता हूँ मै ,सोता हूँ मैं
हँसता हूँ मैं ,रोता हूँ मैं
हाथ थामे ज़िन्दगी का  चलता हूँ मैं
साथ ग़र कुछ कदम तुम भी चलती तो बात कुछ और ही होती ...


टूटता हूँ मैं,संभालता हूँ मैं
गिरता हूँ मैं,उठता हूँ मैं
वक़्त के साथ कभी कुछ बदलता हूँ मैं
बदलती तुम भी साथ मेरे तो बात कुछ और ही होती ...

बढ़ता हूँ मैं ,थमता हूँ मैं
दौड़ता हूँ कभी ,कभी रुकता हूँ मैं
खोता हूँ कभी खुद को तेरी यादों के आगोश मे
खोती  कभी तू  खुद को मेरे लिए तो बात कुछ और ही होती ...


यूँ तो मंजिल  तेरे बगैर भी जाएगी मुझे
साथ गर राह पर तेरा मिल जाता तो बात कुछ और ही होती ...


                      "   तू जो कहें  कविता एक लिखने को ,मैं किताब लिख दूँ 
                           तू पूछे जो हसरत मेरी ,मैं अपने जज्बात लिख दूँ  "